आज लगता है ये ख्वाब न देखा होता तो आज दर्द न होता कुछ अरसो पहले
आदमकद शीशे के सामने खड़े होकर खुद को देखा करते थे देर तक बदती दाड़ी
छोड़ी होती छाती को देखते हुए सोचता था की कब मई बड़ा हो जाऊंगा कब ये वक़्त गुजर जायेगा
दाडी मे आये बालो को पूरी सजगता से गिना करता था जितना दर्द उने तोड़ते वक़्त नहीं हुआ
उससे कई गुना दर्द इन बालो के कड़क और बड़े होने के साथ बढता गया हर एक दाडी के बाल के साथ
नए अरमान और उतने हे कड़े नियम और जिमेदारिया बढती गयी कभी दाडी पर समाज की नज़रो का बोज़
तो कभी खुद के अरमानो का वजन कभी कमाने का कडकपन कभी अपनों को छोड़ने का रुखापण
किसी की चाहत का दर्द रुखी दाडी मे नज़र आने लगा दाडी के कडकपन के साथ दर्द भी उम्र लेता गया
----------------------------------------भाग २---------------------------------------------------
काश न शीशे मे ये बाल नज़र आते न बदती उम्र का अहशाश होता सोचता हु एक बार फिर
दाडी के बाल साफ़ करवा कर इन रजो गम को चुपचाप बाज़ार मे छोड़ कर अँधेरी गली से
घर मे गुश कर दरवाजा बांध कर दू कही बार हालातो से तंग आकर एसा करता भी हु पर
दर्द ऐ गम का जो रिश्ता है मुजशे कुछ खास का
दो रातो मे ये कडकपन फिर चहरे पे नज़र आने लगता है अब तो आइनों से डर लगने लगा है
दिल करता है जो काटे इस चहरे पर उग आये है उने जला कर खुद सुनरे वक़्त मे खो जाऊ
कभी मन करता है सीशो मे ज़ाखना छोड़ दू फिर भी ये काटे अपनी चुभन से अपने होने का
अहशाश करवाते है ये काटे ------------- हनी शर्मा
thanks vivek
जवाब देंहटाएंreally expectations is silent killer...
जवाब देंहटाएंnicely expressed !!
thanks jyoti ji u r comment is very imp for this blog
जवाब देंहटाएंहनी भाई बड़ा मस्त लिखते हो सच में कुछ बात तो है यार तुम्हरे हाथो में मेरे ब्लॉग पर् भी तो आयो यार मेरे ब्लॉग की लिंक ये रही -www.samratbundelkhand.blogspot.com
जवाब देंहटाएंthanks upendara ji
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