पेड़ो से पते पक कर गिरने लगे है आम पीपल नीम पलाश गुलमोहर
से गिरते पतों को देखकर कहता हु की काश...........................
जो दुखो का सैलाब मुजशे जुड़ा है वो भी अब तो पक चूका है.
काश ये दर्द का सैलाब भी इन सूखे पतों की तरह मेरे जिस्म ऐ (रूह)
का साथ छोड़ दे. ........................................................................................................................................................ सुहानी लगती है वसंत की चांदनी राते हलके
होकर चमकते पेड़ सुख के सागर मै गोत्ते लगाते ये पेड़ बड़े सुन्धर मालूम होते है
चमकते पेड़ इन चांदनी रातो मै जानत का नज़ारा देते है जेसे श्री कृष्ण ने यही राश रचा हो
चांदनी रात मै बांशुरी बजाई हो हो समधुर सुर है सारा का सारा वातावरण जेसे ख़ुशी के
फाग मै रंगा हो सबने अपने दुखो को त्याग कर जिस्म ऐ रूह को हल्का कर लिया काश वसंत की चांदनी रात मै गिरते पतों की तरहे मेरा भी दर्द सदा सदा की लिए कृष्ण की सुमधुर बांशुरी मै खो जाये गिरते पतों मै ये दर्द भी गिर जाए
nise
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