आजकल टुटा फूटा सा हु
सपने भी अधूरे है
कही वक़्त से सपना भी नहीं आता
अब तुम जो नहीं आते
सासे सहारा की रेत सी बिखरी बिखरी है
आँखों मै कांटे चुभने लगे है
जहा कभी तेरा चेहरा हुआ करता था
ना वो मोसम ना सर्दी की राते
अब तुम जो नहीं आते अब तो
खवाब भी नहीं आते
गर्मियों की दोहपर मै तुमे ख़त लिखा करती थी
अब नहीं लिख पाती उंगलिया
तुमने जो मना किया था
क्या तुमे याद है
लबो पर नाम भी नहीं अब तो तुमने
ही कहा था जिक्र ना करना कभी
ना कुछ सालो से डाकिये की आवाज़ आयी
ना तेरा कोई ख़त आया
सब टुटा टुटा सा है खवाब
बिखरे बिखरे से ............
खुद को बिखरने से न रोक पायी Aजिन्दगी तो टूटे मोतियों की माला हो गयी
फिर भी तुम्हरी हर बात को संभाल रखा है याद है वो फ़ॉर्क जिस पर तुमने
बर्फ का गोटा गिराया था वो तुमारी आधी खायी चोकलेट आज भी संभाली रखी
है तुम्हारे दिए वो रंग सुख से गए है और खुशिया भी .........................................
अब तुम जो नहीं आते