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समाज तो शक्ति कपूर जेसा है कोई भी लड़की नज़र आई तो उसे गुरना शरू (आहू ..आहू.) ( नज़र रखना शरू)
समाज तो ३ इन वन खलनायक है और तो आश्चर्ये की बात है की जिन्दगी के सिनेमा मै खलनायक के खिलाफ कोई नायक खड़ा ही नहीं हो पाता ( ये पहला सिनेमा है जाह पर नायक की हार होती है ) खड़े होने से पहले ही समाज के लम्बे लम्बे ताने नायक को जिन्दा ही दफ़न कर देते है जिन्दगी के सिनेमा मै कही प्रेम कहानीया बनती है रोज कई लैला मजनू मरते है कही आशिक कतल होते है तो किसी का प्यार सांस भी नहीं ले पाता है
पर यहाँ समाज का राज है यहाँ वही चलेगा जो समाज चाएगा इस फिल्म (सिनेमा) मै एक ही डायलोग है अरे समाज क्या कहेगा कुछ तो समाज की सोच इधर न सन्नी पाजी का ढाई किलो का हाथ काम आता है न कुछ समाज तो पुरानी हिंदी (फिल्मो ) सिनेमा का ठाकुर होता है जो केवल गरीबो का खून चूसा करता था और समाज रूपी ठाकुर केवल माद्यम वर्ग को छलता है समाज का जहर तो होता हे माद्यम वर्ग के लिए है ग़रीब अगर समाज के खिलाफ कुछ करे तो कहा जाता है गरीब है ऐसी हरकत तो करंगे हे वरना बेचारे जायेंगे कहा और अमीर करे तो नयी फैशन मरता तो मिद्दल क्लास है सम्माज के फूटे ढोल को मिद्दल क्लास इंसान दोनों और से जोरो से बजा बजा कर अपनी जुटी ख़ुशी का दिखावा कर रहा है समाज तो एक लुटेरा है