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घर लौटने मे जमाने निकल गए |
घर लौटने मे जमाने निकल गए
अब ये केवल किसी ग़ज़ल की पंक्तिया न होकर जिन्दगी की हकीकत हो गयी
हर दिल मे इस बात की टीस रह गयी
घिर आई शाम हम भी चले अपने घर की और
पंछी भी अपने ठिकाने निकल गए
अब तो हम भी अपने गरोंदो के लिए चल दिए मगर अब तो देर हो चुकी थी
जब घर को लौटे तो जमाने निकल गए
बरसात गुजरी सरसों के मुरजा गए फूल
उनसे मिलने के सारे रास्ते गए भूल
कुछ के चहरे अब भी है याद कुछ हम को गए भूल
पहले तो हम बुज़ाते रहे अपने घर की आग
फिर बस्तियों मे आग लगाने निकल गए
खुद मछलिया पुकार रही है कहा है जाल
तिरो की आरजू मे निशाने निकल गए
किन शाएलो पे नीद की परिया उतर आई
किन जंगलो मे ख्वाब सुहाने निकल गए
हनी , हमारी आँखों का आया उसे ख़याल
जब सारे मोतियों के खजाने निकल गए
हालत यही थे हमारी जिन्दगी के पढ़ लिख गए तो कमाने निकल गये
लौटने मे घर को जमाने निकल गए लौटे थे घर को तो चुलो मे राख
और खली बर्तन रह गए थे कुछ धुंदली यादे और चहरे पे अश्क रह गए थे
उनकी गलिया भी सुनी थी जहा कभी महफ़िल हुआ करती थी
कभी इस घर मै माँ की हसी गूंजा करती थी
अब तो बस खुद से बतियाती दीवारे रह गयी
आती थी वो कुए पर तो नज़र बचा कर हम से मुस्कराया करती थी अब तो
अब तो चेहरा देखे जमाने =================== गुज़र गए
घर लौटने मै जमाने निकल गए देखे अपनों को अब तो जमाने निकल गए
घर लौट अब तो जमाने निकल गए ===========================
घर लौटे अब जमाने निकल गए ============================================
कभी इस घर मै माँ की हसी गूंजा करती थी
अब तो बस खुद से बतियाती दीवारे रह गयी
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जब सारे मोतियों के खजाने निकल गए |
अब तो चेहरा देखे जमाने =================== गुज़र गए
घर लौटने मै जमाने निकल गए देखे अपनों को अब तो जमाने निकल गए
घर लौट अब तो जमाने निकल गए ===========================
घर लौटे अब जमाने निकल गए ============================================