मै भी ओशो तू भी ओशो रंग गया सारा जाहा ओशो के रंग मे प्रणाम
रविवार, 16 सितंबर 2012
अब तुम जो Aनहीं आते
आजकल टुटा फूटा सा हु
सपने भी अधूरे है
कही वक़्त से सपना भी नहीं आता
अब तुम जो नहीं आते
सासे सहारा की रेत सी बिखरी बिखरी है
आँखों मै कांटे चुभने लगे है
जहा कभी तेरा चेहरा हुआ करता था
ना वो मोसम ना सर्दी की राते
अब तुम जो नहीं आते अब तो
खवाब भी नहीं आते
गर्मियों की दोहपर मै तुमे ख़त लिखा करती थी
अब नहीं लिख पाती उंगलिया
तुमने जो मना किया था
क्या तुमे याद है
लबो पर नाम भी नहीं अब तो तुमने
ही कहा था जिक्र ना करना कभी
ना कुछ सालो से डाकिये की आवाज़ आयी
ना तेरा कोई ख़त आया
सब टुटा टुटा सा है खवाब
बिखरे बिखरे से ............
खुद को बिखरने से न रोक पायी Aजिन्दगी तो टूटे मोतियों की माला हो गयी
फिर भी तुम्हरी हर बात को संभाल रखा है याद है वो फ़ॉर्क जिस पर तुमने
बर्फ का गोटा गिराया था वो तुमारी आधी खायी चोकलेट आज भी संभाली रखी
है तुम्हारे दिए वो रंग सुख से गए है और खुशिया भी .........................................
अब तुम जो नहीं आते
शुक्रवार, 3 जून 2011
ये काटे ------------- the hardness of life
आज लगता है ये ख्वाब न देखा होता तो आज दर्द न होता कुछ अरसो पहले
आदमकद शीशे के सामने खड़े होकर खुद को देखा करते थे देर तक बदती दाड़ी
छोड़ी होती छाती को देखते हुए सोचता था की कब मई बड़ा हो जाऊंगा कब ये वक़्त गुजर जायेगा
दाडी मे आये बालो को पूरी सजगता से गिना करता था जितना दर्द उने तोड़ते वक़्त नहीं हुआ
उससे कई गुना दर्द इन बालो के कड़क और बड़े होने के साथ बढता गया हर एक दाडी के बाल के साथ
नए अरमान और उतने हे कड़े नियम और जिमेदारिया बढती गयी कभी दाडी पर समाज की नज़रो का बोज़
तो कभी खुद के अरमानो का वजन कभी कमाने का कडकपन कभी अपनों को छोड़ने का रुखापण
किसी की चाहत का दर्द रुखी दाडी मे नज़र आने लगा दाडी के कडकपन के साथ दर्द भी उम्र लेता गया
----------------------------------------भाग २---------------------------------------------------
काश न शीशे मे ये बाल नज़र आते न बदती उम्र का अहशाश होता सोचता हु एक बार फिर
दाडी के बाल साफ़ करवा कर इन रजो गम को चुपचाप बाज़ार मे छोड़ कर अँधेरी गली से
घर मे गुश कर दरवाजा बांध कर दू कही बार हालातो से तंग आकर एसा करता भी हु पर
दर्द ऐ गम का जो रिश्ता है मुजशे कुछ खास का
दो रातो मे ये कडकपन फिर चहरे पे नज़र आने लगता है अब तो आइनों से डर लगने लगा है
दिल करता है जो काटे इस चहरे पर उग आये है उने जला कर खुद सुनरे वक़्त मे खो जाऊ
कभी मन करता है सीशो मे ज़ाखना छोड़ दू फिर भी ये काटे अपनी चुभन से अपने होने का
अहशाश करवाते है ये काटे ------------- हनी शर्मा
रविवार, 29 मई 2011
मुझे न पता था
वादे उस बेवफा के शीशे से भी कमजोर थे जो एक जटके मे टूट गए
कसमे साथ जन्मो की थी कचे धागे सी टूट गयी
न जाने क्यों किस्मत मुजशे रूठ गयी
बेवफा होगी वो मुझे न ये खबर थी
मुझे न पता था मोह्ब्हत इतना दर्द देती है
किसी की बेवफाई जिन्दगी भर आशु देती है
हज़ार वादे कसमे रोने को यादे देती है
मोहबत तोहफे मे खून के आशु देती है
मुझे न पता था
मोहबत तोहफे मे जान लेती है
मुझे न पता था
सदस्यता लें
संदेश (Atom)