शनिवार, 15 जून 2013

मै भी ओशो तू भी ओशो रंग गया सारा जाहा ओशो के रंग मे  प्रणाम 
i m back लौट आया हु अब फिर  से असीम  शांति और प्रेम के   साथ  फिर से लुटाने को प्रेम इस दुनिया मे

रविवार, 16 सितंबर 2012

अब तुम जो Aनहीं आते

                आजकल टुटा फूटा सा हु
                सपने भी अधूरे है
                कही वक़्त से सपना भी  नहीं आता     
                अब तुम जो नहीं आते 


           
                सासे सहारा की रेत सी बिखरी  बिखरी  है 
                आँखों मै कांटे  चुभने लगे है 
                जहा कभी तेरा चेहरा हुआ करता था 
               ना वो मोसम  ना सर्दी की राते 
                अब तुम जो नहीं आते अब तो 
                 खवाब भी नहीं आते             


               गर्मियों की दोहपर मै तुमे ख़त  लिखा करती थी
                अब नहीं लिख पाती उंगलिया 
                 तुमने जो मना किया था  
                     क्या तुमे याद है    
            
           लबो पर नाम भी नहीं अब तो  तुमने 
          ही कहा था  जिक्र ना करना  कभी 
           ना कुछ सालो से डाकिये की आवाज़ आयी
                    ना तेरा कोई ख़त आया 
             सब टुटा टुटा  सा है खवाब 
                     बिखरे बिखरे से ............ 

           खुद को बिखरने से न रोक पायी                 Aजिन्दगी तो टूटे मोतियों की माला हो गयी 

   फिर भी तुम्हरी हर बात को संभाल रखा है  याद है वो फ़ॉर्क जिस पर तुमने 
   बर्फ का गोटा गिराया था  वो तुमारी आधी खायी  चोकलेट  आज  भी संभाली रखी
 है तुम्हारे दिए वो रंग सुख से गए है और खुशिया भी .........................................
        अब तुम जो नहीं आते 

शुक्रवार, 3 जून 2011

ये काटे ------------- the hardness of life

आज लगता है ये ख्वाब न देखा होता तो आज दर्द न होता  कुछ अरसो पहले  
आदमकद शीशे के सामने खड़े होकर  खुद को देखा करते थे  देर तक बदती दाड़ी 
छोड़ी होती छाती को देखते हुए  सोचता था  की कब मई बड़ा हो जाऊंगा कब ये वक़्त गुजर जायेगा 
दाडी मे आये बालो को पूरी सजगता से गिना करता था  जितना दर्द उने तोड़ते वक़्त नहीं हुआ 
उससे कई गुना दर्द इन बालो के कड़क और बड़े होने के साथ बढता गया  हर एक दाडी के बाल के साथ
नए अरमान और उतने हे कड़े नियम और जिमेदारिया बढती गयी  कभी दाडी पर समाज की नज़रो का बोज़
तो कभी खुद के अरमानो का वजन कभी कमाने का कडकपन कभी अपनों को छोड़ने का रुखापण 
किसी की चाहत का दर्द रुखी दाडी मे नज़र आने लगा  दाडी के कडकपन के साथ दर्द भी उम्र लेता गया 
----------------------------------------भाग २---------------------------------------------------
काश न शीशे मे ये बाल नज़र आते  न बदती उम्र का अहशाश होता सोचता हु एक बार फिर 
दाडी के बाल साफ़ करवा  कर इन रजो गम को चुपचाप  बाज़ार मे छोड़ कर अँधेरी गली से 
घर मे गुश कर दरवाजा बांध कर दू  कही बार हालातो से तंग आकर एसा करता भी हु पर 
दर्द ऐ गम का जो रिश्ता है मुजशे कुछ खास का 
दो रातो मे ये कडकपन  फिर चहरे पे  नज़र आने लगता है अब तो आइनों से डर लगने लगा है
दिल करता है जो काटे इस चहरे पर उग आये है  उने  जला कर खुद सुनरे वक़्त  मे खो जाऊ 
कभी मन करता है सीशो मे ज़ाखना छोड़ दू    फिर भी ये काटे अपनी चुभन से अपने होने का 
अहशाश  करवाते है   ये काटे -------------                हनी शर्मा  

रविवार, 29 मई 2011

मुझे न पता था

वादे उस बेवफा के  शीशे से भी कमजोर थे जो एक जटके मे टूट गए

कसमे  साथ  जन्मो की थी  कचे धागे सी टूट गयी 

न जाने क्यों किस्मत मुजशे रूठ गयी 

बेवफा होगी वो मुझे न ये खबर थी 

मुझे न पता था मोह्ब्हत   इतना दर्द देती है 

किसी की बेवफाई जिन्दगी  भर आशु  देती है 
 
हज़ार वादे कसमे रोने को यादे देती है 
 
मोहबत  तोहफे मे  खून  के आशु देती है 

मुझे न पता था              

मोहबत  तोहफे मे जान लेती है 

  मुझे न पता था