मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

अश्क

आज शाम डलते डलते कोई ४ बजे होगे और आज  आसमान की आँखों मै भी नशा  नजर आ रहा है
   जेसे पूरी रात सोया न हो आँखे भारी सी है 
कुछ अश्क की बुँदे  इशक के धरातल पर टपकने को आतुर सी नज़र आती है 
आकाश की छवि धरातल के अक्ष से आज बड़ी धुंधली सी नज़र आ रही है
 जेसे कोई पुरानी तस्वीर याद आ रही हो उसके साथ गुजरा ज़माना याद आ रहा हो  आँखों  के 
सामने सब दुन्ध्ला सा है लगता है  आसमा के आशु   निकल आयेंगे इतनी बड़ी गहरी आखो मै 
कब तक तेर पायेंगे  दूर पाहडी  पर तहरा आकश एसा नज़र आता है जेसे अभी रो देगा 
न जाने क्यों आज आकश इतना प्यारा और दर्द का सागर लगता है दिल मै तड़प उठती है की इसे बाहों मै 
ले कर जी भर कर रो ले आसमा के  के साथ अपने अश्क  खो दे    

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